Menu
blogid : 1385 postid : 11

एक आगंतुक

shephalikauvach.blogspot.com
shephalikauvach.blogspot.com
  • 5 Posts
  • 14 Comments

दो दिन पहले की बात है, शाम का वक़्त था. अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे पापा बाहर फोन पर किसी से बात कर रहे हैं. पापा की आवाज़ सुनकर जैसे ही मैं दरवाज़ा खोलने के लिए बढ़ी, मैंने देखा कि पापा दरवाज़े पर मैले कुचैले कपडों में बैठे एक व्यक्ति से कुछ कह रहे थे. उस व्यक्ति के हाथ में एक पोलीथिन था जिसमें हाल ही की खरीदी गयीं दो मूलियाँ थीं. पापा उस व्यक्ति से दरवाज़ा छोड़ एक ओर हठने की बात कह रहे थे और वह व्यक्ति भरसक पापा को यह समझाने का प्रयत्न कर रहा था कि वह अपने ही घर की देहलीज़ पर बैठा है और अन्दर जाने का इंतज़ार कर रहा है. बड़ी अजीब सी बात थी, जान न पहचान तू मेरा मेहमान!
उसका हुलिया देख और उसकी अनर्गल बातें सुन मुझे लगा कि वह कोई शराबी है, इसलिए मैंने पापा से कहा कि लगता है इसने शराब पी रखी है, आप छोडिये इसे, अन्दर आ जाइए. मेरी बात पर पापा कुछ कह पाते इससे पहले ही वो बोला, नहीं बेटा मैंने शराब नहीं पी, ये मेरा ही घर है, मैं यहीं ऊपर किराए पर तो रहता हूँ.

यहाँ किराए पर?? भैय्या हमारी छत पर तो कोई कमरा नहीं है, फिर कहाँ रहते हो? पापा ने उसकी बात पर मुस्कुराते हुए कहा.

बाबूजी मैं यहीं रहता हूँ, अन्दर जाने दो मुझे, मैं तो घर से बाहर निकलता ही नहीं, बाज़ार से मूली लाने गया था, और अब आप घर नहीं जाने दे रहे हो?

ज़ाहिर सी बात है, उसकी इस बात पर हम दोनों ही हैरान थे. वो हमारी बात का ठन्डे दिमाग से जवाब दे रहा था.वह पूरी कोशिश कर रहा था हमें समझाने की पर वो नहीं समझ पा रहा था कि हम उसकी बात क्यूँ नहीं समझ रहे हैं, उधर हमारे साथ भी कुछ ऐसी ही बात थी. उसकी आवाज़ लडखडाई तो लग रही थी पर उसकी भाषा सधी हुयी थी, किसी प्रकार की अभद्रता उसमें नहीं थी…शायद वह सच कह रहा था कि उसने शराब नहीं पी.

उसकी बात सुन पापा बोले- ठीक है मान लेता हूँ कि तुम यहीं रहते हो, अपने किसी पडोसी से मिलवाओ मुझे.

पापा की बात सुनकर उस व्यक्ति ने अपनी आँखें भींचते हुए कहा, बाबू जी, मैं घर मैं ही रहता हूँ, तबियत ठीक नहीं रहती इसलिए घर से बाहर बहुत कम निकलता हूँ, देखो न इसीलिए तो……..

मेरे माँ बाप ने मेरी शादी भी नहीं करवाई. भैय्या को बुलाकर आपकी बात करवाता हूँ, पर आप अन्दर घुसने तो दो…….

पापा उसे धंकेलते हुए अन्दर आ गए, और कहा, कि ठीक ठीक है, तुम जाके पुलिस में रिपोर्ट करा दो कि मैं तुम्हे तुम्हारे घर मैं नहीं घुसने दे रहा…पापा अन्दर आ गए,

उसने दरवाज़े की जाली में से झांकते हुए कहा- ठीक है बाबू जी मैं कम्प्लेंट करूंगा पर, ये मूली तो ले लो, परांठे बना लेना सुबह,

पापा उसकी बात को अनसुना कर अन्दर आकर सोफे पर बैठ गए, मगर मेरी नज़र उसी पर थी, वो व्यक्ति अपना सर पकड़ कर बैठा था, बार बार चिंता में अपना सर हिला रहा था. थोड़ी देर में उसने फिर दरवाज़े से भीतर झांकते हुए कहा- बाबूजी, खाना खा आने दो फिर निकाल देना मुझे बाहर, भैय्या भाभी राह देख रहे होंगे,…

अपनी बात कह वह उत्तर की प्रतीक्षा में कुछ देर अपनी नज़रें दरवाज़े से गडाए रहा, जब बहुत देर तक कुछ उत्तर न मिला तो उसने झुंझलाहट में पोलीथिन में रखी मूली को सड़क पर फ़ेंक दिया और अपनी हंथेलियों से अपने चेहरे को ढँक लिया….

मैं अन्दर आ गयी. थोड़ी देर बाद मैंने फिर दरवाज़े की ओर देखा, वो अब तक वहीँ बैठा हुआ था. पापा ने पूंछा क्या हुआ वो गया क्या? जवाब में मैंने न में सर हिला दिया,

पापा उठकर बाहर आये, और दरवाज़ा खोलकर उससे बोले, अब जाओ यहाँ से, बहुत हो गया.

कहाँ जाऊं अपना घर छोड़ के?? उसने दीनता भरे स्वर में कहा.

अब वाकई हम परेशान हो गए थे, सोसाइटी के भी कुछ लोग आ गए, गेट कीपर भी अपने गलती पर सर खुजलाते हुए हमारे बगल में आ खड़ा हुआ, कुछ लोग गेट कीपर पर भड़क रहे थे कि क्या चौकीदारी करता है, कोई भी ऐरा गैर अन्दर घुस आता है,….बेचारे गेट कीपर की भी जैसे जान पर बन आयी, अपनी गलती से ध्यान हटाने के लिए उसने कहा साब इस बार माफ़ कर दो आगे से ऐसी गलती नहीं होगी. मैं अभी इसका दिमाग ठिकाने लगता हूँ और उस व्यक्ति का हाथ पकड़ कर उसे लगभग घसीटते हुए वह गेट से बाहर से ले गया,…….

हम लोग अन्दर लौट आये.

अन्दर आते हुए पापा कुछ सोचते हुए बोले वो व्यक्ति बुरा नहीं था केवल उसका समय बुरा था. वह मानसिक रोगी था, ऐसी स्थिति किसी के भी साथ हो सकती है…..
मैं पापा की बात से पूरी तरह सहमत थी, पर एक अनजान को घर में घुसाना किसी खतरे को बुलावा देने से कम नहीं है, समय ही ऐसा है, यही तर्क मैंने पापा के सामने पटक दिया था उस वक़्त ….. पर जो भी हो उस पर विश्वास करना और न करना दोनों ही हमारे लिए मुश्किल बातें थीं. मनुष्यता की परीक्षा लेते हुए मैंने कई भिखारिओं को दिल्ली की सड़कों पर देखा है, लोगों को लगभग रुला देने वाले उनके मिथ्या उपक्रमों का भंडा फोड़ होते हुए भी देखा है, ऐसे में हम कैसे उस व्यक्ति पर विश्वास कर लेते? हो सकता है कि उसका मानसिक संतुलन वाकई सही न हो, पर भिक्षावृत्ति पर जीवन यापन करने वालों को भावनाओं से हमने इतना खेलते हुए देखा है कि दिमाग ऐसे किसी भी व्यक्ति पर विश्वास करने से मना कर देता है, यही कारण है कि कई बार गेंहू के साथ घुन भी पिस जाता है….
क्या पता वो गेंहू था या घुन…

थोड़ी देर में जब गेट कीपर लौटा तो उसने हमें बताया कि वह व्यक्ति कह रहा था- भाई मैं रास्ता भूल जाता हूँ, कहाँ है मेरा घर मैं भूल गया हूँ. माफ़ करना ज़रा …

मैं निकलता नहीं घर से, अब मेरा घर….. कैसे घर जाऊंगा……

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh